Netaji Subhas Chandra Bose From Hitler's Germany to Japan| Full Biography in Hindi

Netaji Subhas Chandra Bose From Hitler's Germany to Japan| Full Biography in Hindi

Netaji Subhas Chandra Bose From Hitler's Germany to Japan| Full Biography in Hindi

नमस्कार दोस्तों 9 फरवरी 1943 जर्मनी के शहर कील से एक जर्मन सबमरीन रवाना होती है वैसे तो इसमें सभी नाजी जर्मनी के सोल्जर्स बैठे हैं लेकिन इन सबके बीच मौजूद है एक इंडियन भी एक इंडियन जिनका नाम है मसूदा इस सबमरीन को मिशन दिया गया है साउथ की तरफ ट्रैवल करना अफ्रीका के बगल से होते हुए जाना और मिस्टर मसूदा को ट्रांसफर करना एक जपनीज सबमरीन में यह काम सुनने में आसान लगता है लेकिन खतरों से बिल्कुल भी खाली नहीं है क्योंकि समुद्र भरा हुआ है ब्रिटिश जहाजों से और यह समय है वर्ल्ड वॉर 2 का जब जर्मनी और जापान दोनों लड़ रहे हैं ब्रिटिश के खिलाफ 26 अप्रैल 1943 करीब ढाई महीने के सफर के बाद जब यह जर्मन सबमरीन मडगास्कर की कोस्ट के पास पहुंचती है तो सामने जैपनीज सबमरीन नजर आती है लेकिन समुद्र इतना तूफानी था कि इन दोनों सबमरींस का एक दूसरे के आसपास आना बहुत खतरनाक हो सकता था तो अगले दो दिन तक ये दोनों सबमरींस पैरेलली चलती रहती हैं आगे फाइनली जाकर जब मौसम साफ होता है तो मिस्टर मसूदा सबमरीन से बाहर निकलते हैं एक छोटी सी राफ्ट में पैडलिंग करते हुए भीगते हुए वो जैपनीज सबमरीन के पास पहुंचते हैं जहां पर कैप्टन मासाओ राओ का उनका स्वागत करते हैं एक सवाल आपके मन में उठेगा कि जर्मन और जैपनीज सबमरींस वर्ल्ड वॉर टू के समय पर एक इंडियन की क्यों मदद कर रही हैं ऐसा इसलिए दोस्तों क्योंकि मिस्टर मसूदा और कोई नहीं बल्कि हमारे नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं जाने अनजाने में इस ऐतिहासिक जर्नी के दरा यह इतिहास के पहले इंडियन भी बन जाते हैं एक सबमरीन में सफर करने वाले सुभाष चंद्र बोस दोस्तों इंडिया के सबसे महान फ्रीडम फाइटर्स में से एक है और इनकी पूरी कहानी ऐसे ही कमाल के किस्सों से भरी हुई है कैसे यह ब्रिटिश हुकूमत को चख मा देकर इंडिया छोड़कर भागे जर्मनी गए हिटलर से मिले रशिया गए जापान गए जापानीज प्राइम मिनिस्टर से मिले सिंगापुर गए अपनी एक आर्मी बनाई और इंडिया के बाहर रहकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सबसे बड़ी जंग छेड़ी वी वांट टू एक्सपेल ब्रिटिश पा फम इंडिया वी हैव टू फाइट द एनेमी विथ हि ओन वेपन आइए समझते हैं 
Netaji Subhas Chandra Bose From Hitler's Germany to Japan| Full Biography in Hindi

इनकी पूरी दास्ता आज के आर्टिकल्स साल 1939 से वो साल जब वर्ल्ड वॉर ट की शुरुआत हुई वाइस रॉय लॉर्ड लिन लिथ गो ने इंडिया के बिहाव प भी वॉर डिक्लेयर कर दी बिना किसी इंडियन से कंसल्ट किए कांग्रेस के लिए यह बड़ी एंबेरेसमेंट वाली बात थी और गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के तहत कांग्रेस के पास कुछ मिनिस्ट्री का कंट्रोल था तो कांग्रेस ने उन सभी पोजीशन से रिजाइन कर दिया इस समय के बीच सुभाष चंद्र बोस अपनी खुद की पार्टी ऑर्गेनाइज कर रहे थे द फॉरवर्ड ब्लॉक हालांकि ये पार्टी कांग्रेस के बीच से ही निकली थी लेकिन साल 1940 तक आते-आते इसको कांग्रेस के मुख्य संगठन से अलग कर दिया गया था इसके पीछे दो कारण थे पहला यह कि सुभाष चंद्र बोस कुछ ज्यादा ही लेफ्टिनेंट की बात मैंने डिटेल में गांधी व वर्सेस बोस वाले वीडियो में करी है लिंक डिस्क्रिप्शन में अगर आपने नहीं देखा है और दूसरा कारण था कि बोस चाहते थे सेकंड वर्ल्ड वॉर का इस्तेमाल किया जाए इंडिया के बेनिफिट के लिए वो जल्दी से एक्शन लेना चाहते थे और कांग्रेस से अलग होना उनके लिए एक नेसेसिटी बन गई थी जुलाई 1940 कलकता में बोस एक मार्च लीड कर रहे थे जिसके चलते उन्हें ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा अरेस्ट कर लिया जाता है जेल में रहकर वह सरकार की ताकत को चैलेंज करते हैं एक हंगर स्ट्राइक लॉन्च करके रिलीज मी और आई शाल रिफ्यूज टू लिव उनकी तरफ से सीधी अनाउंसमेंट करी जाती हैन 1940 ही वाज लैंग्विशिंग इन प्रिजन सो ही गेव एन अल्टीमेटम टू द ब्रिटिश गवर्नमेंट एंड अंडरटुक ए फास्ट अटे देखते देखते उनकी तबीयत खराब होने लगती है और एक ही हफ्ते में सरकार डिसाइड करती है कि उन्हें जेल से निकालकर हाउस अरेस्ट पर रख दिया जाए सरकार नहीं चाहती थी कि उन पर ब्लेम आए अगर सुभाष चंद्र बोस जेल में मारे गए तो इसलिए उन्होंने सोचा कि जब तक हेल्थ खराब है तब तक हाउस अरेस्ट पर रखते हैं जैसे ही हेल्थ ठीक होगी वापस जेल में डाल देंगे लेकिन नेताजी अपने अलग ही प्लांस रच रहे थे इनका प्लान था जर्मनी जाना और जर्मन से मदद मांगना ब्रिटिश के खिलाफ लड़ाई करने के लिए लेकिन जर्मनी तक जाया कैसे जाए बोस पंजाब में मौजूद एक कम्युनिस्ट ऑर्गेनाइजेशन को कांटेक्ट करते हैं यह जानने के लिए कि क्या कोई तरीका है बॉर्डर पार करके जर्मनी तक छुपके से जाने का उन्हें बताया जाता है कि एक तरीका जरूर है अफगानिस्तान के थ्रू अगर एंटर किया जाए वहां से सोवियत यूनियन जाया जाए तो वहां से जर्मनी जाया जा सकता है 16 जनवरी 1941 रात के करीब 1:30 बजे जब पूरा शहर सो रहा था तो नेताजी छुपके से अपने घर से बाहर निकलते हैं अपने भतीजे शिशिर कुमार बोस के साथ उन्होंने एक डिसगाइज पहनी हुई थी वो प्रिटेंड कर रहे थे कि वो एक इंश्योरेंस एजेंट है जिनका नाम है मोहम्मद जियाउद्दीन सिसिर के साथ अंधेरे में ये रात भर ड्राइव करते रहते हैं करते रहते हैं और सुबह के करीब 8:30 बजे धनबाद पहुंचते हैं यहां ये एक रात सिसिर के भाई अशोक के घर में बिताते हैं और अगले दिन नजदीक के गोमो स्टेशन से बोस काल का मेल की ट्रेन पकड़ लेते हैं ये रेलगाड़ी पहले दिल्ली पहुंचती है और वहां से यह गाड़ी बदलते हैं पेशावर की ओर अगली ट्रेन पकड़ते हैं द फ्रंटियर मेल नाम से पेशावर पहुंचकर इन्हें रिसीव किया जाता है फॉरवर्ड ब्लॉक के प्रोविंशियल लीडर मियाना अकबर शाह के द्वारा अगला पड़ाव था ब्रिटिश राज के इलाकों से पूरी तरीके से बाहर निकलना ऐसा करने के लिए ये अपना रूप फिर से बदल लेते हैं मोहम्मद जियाउद्दीन से ये एक गूंगे और बहरे पठान बन जाते हैं यहां गूंगा और बहरा होना इसलिए जरूरी था क्योंकि बोस को पश्तो भाषा बोलनी नहीं आती थी पखले पख ख पख से दे पैर वो से जोड़ वो से खैर दे मुंह खुलते राज भी खुल जाएगा तो बॉर्डर पर कोई भी चेक करने आए तो उनके साथ चलने वाला पक्ष तो बता दे कि यह बगल वाला पठान तो गूंगा और बहरा है ये एक और फॉरवर्ड ब्लॉक के लीडर भगतराम तलवार के साथ ट्रेवल करते हैं और दोनों प्रिटेंड करते हैं कि अफगानिस्तान में अद्दा शरीफ की श्राइन पर जा रहे हैं प्रार्थना करने की इन्हें बोल और सुनना आ जाए 26 जनवरी साल 1941 गाड़ी के जरिए पेशावर से निकलते हैं यह और शाम तक ब्रिटिश एंपायर का बॉर्डर क्रॉस हो चुका था 29 जनवरी की सुबह तक वह अड्डा शरीफ पहुंच जाते हैं और ट्रक्स और टंक की मदद से काबुल तक का सफर पूरा करते हैं कलक से काबुल जाने में नेताजी को 15 दिन का समय लगा लेकिन ब्रिटिश सरकार को इनके एस्केप के बारे में इनके भाग निकलने के सिर्फ 12 दिन बाद ही पता चला ऐसा इसलिए क्योंकि घर पर मौजूद जो लोग थे वो कांस्टेंटली इनके कमरे में खाना डिलीवर करने आते थे और इनके बाकी भतीजे इनका खाना खा जाते थे लोगों को लगता कि सुभाष जी अभी भी कमरे में ही है खाना तो खाया जा रहा है उनके लिए खाना डिलीवर करवाया जा रहा है और यह बात को इतना सीक्रेट रखा गया कि सुभाष जी की मम्मी तक को नहीं पता था कि वह भाग निकले हैं घर से ये सिर्फ 27 जनवरी को था जब सुभाष चंद्र बोस के खिलाफ एक केस सुनना जाना था कोर्ट में और जब वो कोर्ट में पेश नहीं हुए तो उनके दो भतीज ने पुलिस को इफॉर्म किया कि वह तो घर में है ही नहीं 27 जनवरी को इनकी गायब होने की खबर पहली बार अखबार में पब्लिश होती है आनंद बाजार पत्रिका और हिंदुस्तान रल्ड जिसके बाद रॉयटर्स भी इसे उठा लेता है और दुनिया भर में एक खबर फैल जाती है ब्रिटिश इंटेलिजेंस के पास कई रिपोर्ट्स आती हैं एक रिपोर्ट बताती है कि वोह किसी जापान जाने वाले जहाज में है दूसरी कुछ और बताती है लेकिन कोई रिपोर्ट सच नहीं थी कलकाता से जापान जाने वाले एक जहाज की तलाशी भी ली जाती है ब्रिटिश के द्वारा लेकिन बोस का कोई नामो निशान नहीं था सुभाष ने अपने भतीजे शिशिर को बताया था कि चार से पाच दिन तक अगर यह खबर दबी रहती है कि वह भाग निकले हैं तो उसके बाद तो उन्हें पकड़ना नामुमकिन है और यह बात सच थी क्योंकि इसके बाद कभी भी ब्रिटिश सरकार उन्हें वापस पकड़ नहीं पाई काबुल पहुंचने के बाद नेताजी सोवियत की एंबेसी में जाते हैं मदद मांगने के लिए लेकिन यहां से उन्हें कोई मदद मिलती नहीं है क्योंकि रशियंस को लग रहा था कि वह एक ब्रिटिश एजेंट हैं जो सोवियत यूनियन में इफिल्टर करना चाह रहे हैं फिर वो कोशिश करते हैं जर्मन एंबेसी को कांटेक्ट टेक्ट करने की हानस पिलगर एक जर्मन मिनिस्टर जो उस वक्त एंबेसी में मौजूद थे वह जर्मन फॉरेन मिनिस्टर को एक टेलीग्राम भेजते हैं 5थ फरवरी को यह कहते हुए कि सुभाष से मिलने के बाद मैंने उसे एडवाइस किया है कि वह मार्केट में छुपा हुआ रहे अपने इंडियन दोस्तों के साथ और मैं उसके बिहाव पर रशियन एंबेसडर को कांटेक्ट करता हूं कुछ दिन बाद नेताजी को संदेश मिलता है कि अगर उन्हें अफगानिस्तान से आगे निकलना है तो उन्हें इटालियन एंबेसडर से मिलना चाहिए 22 फरवरी साल 1941 को यह मीटिंग होती है 10 मार्च को बोस को कहा जाता है कि एक नया इटालियन पासपोर्ट बनवा लो बोस को एक नया इटालियन पासपोर्ट दिया जाता है एक नई इटालियन आइडेंटिटी के साथ यह फोटो लगी थी उनके इटालियन पासपोर्ट पर और अब उनका नाम था ऑरलैंडो माजो इस बीच ब्रिटिश सरकार ने एक इटालियन डिप्लोमेटिक कम्युनिकेशन को इंटरसेप्ट किया था और उन्हें यह पता लग गया था अब कि बोस काबुल में है उन्हें यह भी पता लग गया कि वह जर्मनी जाने की सोच रहे हैं मिडिल ईस्ट के थ्रू तो ब्रिटिश इंटेलिजेंस के दो स्पेशल ऑपरेशंस एग्जीक्यूटिव को ये काम दिया जाता है टर्की में बोस को ढूंढो और उन्हें जर्मनी पहुंचने से पहले ही मार डालो लेकिन नेताजी एक कदम आगे थे उन्होंने मिडिल ईस्ट के थ्रू जाने वाला रास्ता कभी लिया ही नहीं उल्टा वो मॉस्क पहुंच गए अपनी नई इटालियन आइडेंटिटी के साथ मॉस्को पहुंचकर वो फाइनली एक ट्रेन पकड़ते हैं बर्लिन की ओर और सेकंड अप्रैल 1941 को वो पहुंच जाते हैं जर्मनी की राजधानी बर्लिन में यहां तीन मकसद थे नेताजी के पहला एक इंडियन गवर्नमेंट इन एजाइल सेटअप करना दूसरा एक जरिया ढूंढना अपनी आवाज लोगों तक पहुंचाने के लिए और तीसरा एक आर्मी की स्थापना करना जो बनी हो इंडियंस से वो इंडियंस जो वॉर के प्रिजनर्स रहे हैं अब एक-एक करके देखते हैं कि कैसे नेताजी ने इन चीजों पर काम किया और कैसे उनकी मुलाकात हुई जर्मनी के तानाशाह हिटलर से सबसे बड़ा संघर्ष यहां पर था कि जर्मनी एक डिप्लोमेटिक रिकग्निशन दे इंडिया को वो चाहते थे कि जर्मनी और बाकी एक्सेस पावर्स ऑफिशियल डिक्लेयर कर दें कि इंडिया एक आजाद देश है और इंडिया के इंडिपेंडेंस को वो अपना एक वॉर एम बना है लेकिन जर्मनी ने ऐसा डिक्लेरेशन कभी दिया नहीं क्योंकि हिटलर इस आईडिया से कंफर्टेबल नहीं था अपनी इनफेमस किताब माइन कांप में हिटलर ने अपनी राय बताई थी इंडिया के ऊपर उसने लिखा कि वह प्रशंसा करता है ब्रिटिश सरकार की किस तरीके से उन्होंने इंडिया को डोमिनेट किया है और एडमिनिस्टर किया है और एक जर्मन ब्लड होने के बावजूद इन स्पाइट ऑफ एवरीथिंग उसने लिखा कि वह इंडिया को ब्रिटिश रूल के अंडर ही देखना चाहता है इतना ही नहीं हिटलर ने इंडियन फ्रीडम फाइटर्स का भी मजाक उड़ाया उन्हें एश एटिक जगलर्स बुलाकर इंडिया की पूरी आजादी की लड़ाई हिटलर के लिए एक मजाकथी लेकिन फिर भी हिटलर नेताजी सुभाष चंद्र बोस का इस्तेमाल करना चाहता था इस वॉर में ब्रिटिश के खिलाफ नेताजी भी इस बात को जानते थे कि जो रिलेशनशिप है उनके और नाज जर्मनी के बीच में वो एक ट्रांजैक्शनल रिलेशनशिप है दोनों को यहां पर अपना फायदा दिख रहा है इसलिए यह रिलेशनशिप है नहीं तो यह नहीं एजिस्ट करेगा इस सोच से वह काम पर लग जाते हैं वो प्लांस बनाते हैं कि कैसे इंडिया एक्सेस पावर्स के साथ कोलैबोरेट कर सकता है वो बर्लिन में फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना करते हैं और फिर एक मेमोरेंडम सबमिट करते हैं वह हिटलर को ये दिखाते हुए कि हिटलर अपनी आर्मी को लेकर इंडिया पर हमला बोले ताकि ब्रिटिश को वहां से हटाया जा सके और यह ऐसा होगा कि ब्रिटिश एंपायर के दिल पर हमला किया जा रहा हो वो चीजों को थोड़ा तोड़ मरोड़ के दिखाने की कोशिश करते हैं हिटलर को उकसाने के लिए कि वह अपनी आर्मी को ले जाकर इंडिया में ब्रिटिश के खिलाफ फाइट करें लेकिन कोई पॉजिटिव रिजल्ट इसका दिखता नहीं मेन रीजन यही था कि हिटलर को कोई परवाह नहीं थी इंडिया की आजादी की लेकिन एक और जर्मन था जो एक्चुअली में काफी इंटरेस्टेड था बोस की मदद करने में एडम फॉन ट्रॉट हेड ऑफ द इंडिया सेक्शन ऑफ द फॉरेन ऑफिस इन बर्लिन इनकी मदद से इस फॉरेन ऑफिस को एक स्पेशल इंडिया डिवीजन बना दिया जाता है कुछ ही महीनों बाद सेकंड नवंबर 1941 को बोस यहां पर फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना करते हैं इनफैक्ट इसी सड़क पे वो जो आप बिल्डिंग देख रहे हैं वो ऑफिस हुआ करता था फ्री इंडिया सेंटर आज के दिन वहां पर बस एक कैफे है कोई नाम और निशान नहीं है कि ये पहले कभी ऑफिस हुआ करता था और दूसरी तरफ एक स्पेन की एंबेसी है इस सेंटर पर होने वाली पहली मीटिंग में छह डिसीजंस लिए जाते हैं पहला इस पूरे संघर्ष का नाम होगा आजाद हिंद या फ्री इंडिया दूसरा यूरोप में इस ऑर्गेनाइजेशन का नाम होगा आजाद हिंद सेंटर तीसरा हमारे देश का नेशनल एंथम होगा जन गन मन चौथा हमारी इस मूवमेंट का जो एंबलम है वह ट्राई कलर होगा विद अ स्प्रिंगिंग टाइगर पांचवा इंडियंस एक दूसरे को ग्रीट करेंगे जय हिंद कहकर और छठा सुभाष चंद्रबोस को टाइ टल दिया जाएगा नेताजी का 20 मई 1941 को नेताजी ने एक डिटेल प्लान सबमिट किया था जर्मन सरकार को कि कैसे दुनिया भर में प्रोपेगेंडा पर काम किया जा सकता है ब्रिटिश इंपीरियल ज्म के खिलाफ इसी प्लान का एक हिस्सा था आजाद हिंद रेडियो 19 फरवरी 1942 नेताजी डिसाइड करते हैं कि ओलांगो मजो की आइडेंटिटी बहुत हुई इसे छोड़ा जाए और अपना असली चेहरा दुनिया के सामने लाया जाए वह अपना पहला संदेश आजाद हिंद रेडियो के जरिए दुनिया के सामने पहुंचाते हैं दिस इज सुभाष चंद्र बोस स्पीकिंग टू यू ओवर आजाद हिंद रेडियो जो कि फरवरी 1942 में जाकर इंडियन लोगों के सामने भी ब्रॉडकास्ट होना चालू होता है सुभाष चंद्र बोस अपना पहला एड्रेस इस रेडियो के जरिए देशवासियों को देते हैं सभी लोग अपनी लड़ाई जारी रखो एक्सेस पावर्स जल्द ही इस मिशन में हमारी मदद करेंगी और ब्रिटिश इंपीरियल ज्म के खिलाफ हम लड़ेंगे बहनों और भाइयों हमने जो आजादी की लड़ाई छेड़ रखी है उसे तब तक जारी रखना होगा जब तक हमें मुकम्मल आजादी हासिल ना हो रेडियो के अलावा एक मंथली जर्नल भी बनाई जाती है आजाद हिंद नाम से जिसे मार्च 1942 में रोल आउट किया जाता है कुछ ही दिनों के अंदर-अंदर 5000 कॉपीज इसकी जर्मनी में सर्कुलेट करी जाती है लेकिन तीसरा मकसद जो था वहां पर प्रॉब्लम्स आ रही थी बोस चाहते थे कि जो वो आर्मी खड़ी कर रहे हैं उसे इंडियन नेशनल आर्मी बुलाया जाए लेकिन नाजी हुकूमत ने एक नई इंडिपेंडेंट आर्मी को मान्यता देने से से इंकार कर दिया था इसलिए इस मिलिट्री यूनिट का नाम रखा गया इंडियन लीजन बोस यहां पर 10000 से ज्यादा प्रिजनर्स ऑफ वॉर से मिले उनसे बातचीत करी सबको तो वो कन्वींस नहीं कर पाए करीब आधे लोग कन्विंसिंग की जो स्ट्रेंथ थी वो करीब 5000 लोग थे यह आर्मी छोटी जरूर थी लेकिन कई माइनों में ऐतिहासिक थी क्योंकि नेताजी अलग-अलग धर्मों के अलग-अलग कास्ट के लोगों को इकट्ठा करने में सक्सेसफुल हो गए थे कैप्टन वाल्टर हार्ब जो उस वक्त ट्रेनिंग कैंप के इंचार्ज थे उन्होंने नोट किया हिज एक्सीलेंसी नेताजी गोल्स वाज टू पैरालाइज द सेंचुरी ओल्ड एंटागनिस्ट्स रूटेड इन द इंडियन नेशनलिटीज रिलीजस एंड कास्ट्स एंड टू यूनाइट द मेंबर्स ऑफ बोथ दीज यूनिट्स इन वन ग्रेट कॉमन एम 26 अगस्त साल 1942 इंडियन लीजन अपनी ओथ लेता है और इसके साथ नेताजी अपने सभी मकसद को पूरा करने में ऑलमोस्ट पूरी तरीके से सक्सेसफुल रहते हैं जर्मनी में सिवाय एक चीज के एक्स पावर्स अभी भी इंडिया को इंडिपेंडेंट डिक्लेयर नहीं कर रहे थे इसके पीछे कारण था हिटलर का नेगेटिव एटीट्यूड इंडियंस को लेकर कुछमहीने पहले मई 1942 में सुभाष चंद्र बोस की मुलाकात भी होती है एडोल्फ हिटलर से इस मुलाकात के बाद नेताजी कन्विंसिंग विक्ट्री में ज्यादा इंटरेस्ट है एस कंपेयर टू कि मिलिट्री वाइज एक्चुअली में जीता जाए इसलिए अब नेताजी की नजर मुड़ती है जापान की ओर अब तक य खबर ऑलरेडी जापान तक पहु चुकी थी कि जर्मनी में एक आर्मी बनाई जा रही है इंडियंस की ब्रिटिश को इंडिया से बाहर फेंकने के लिए जपनीज प्राइम मिनिस्टर हिद की तोजो ने इसका नोट लिया था वो अर्ली 1942 से वैसे ही कहते आ रहे थे कि समय आ गया है इंडियंस को खड़ा होने का ब्रिटिश रूल के खिलाफ यहां अगर आप वर्ल्ड वॉर ट के किस्सों के बारे में डिटेल में जानना चाहते हैं तो कुकक एफएम पर कई सारी ऑडियो बुक्स मौजूद है जैसे कि ये जोसेफ स्टैन के ऊपर सोवियत यूनियन के लीडर वर्ल्ड वॉर 2 के दौरान या फिर ये एलन टूरिंग के ऊपर एक ऐसे जीनियस इंसान जिन्होंने जर्मन कोड को क्रैक किया और ब्रिटिश को मदद करी इस वर्ल्ड वॉर में कुकू एफएम जनरली भी एक बढ़िया ऑडियो लर्निंग का प्लेटफॉर्म है जहां पर आपको ऑलमोस्ट हर तरह के टॉपिक पर ऑडियो बुकस सुनने को मिलेंगे चाहे वो हिस्ट्री हो पॉलिटिक्स हो माइथोलॉजी हो या फिक्शन ही क्यों ना हो ऑडियो बुक्स तब सुनने के लिए बेस्ट रहती हैं जब आप वॉक कर रहे हो या कुछ और घर में छोटे-मोटे काम करते हो अगर आपने कुक एफएम को अभी तक जवाइन नहीं किया है तो नीचे डिस्क्रिप्शन में एक स्पेशल 50 पर ऑफ का कूपन है जाकर चेक आउट कर सकते हैं और अब टॉपिक पर वापस आते हैं फरवरी 1942 में जापान सिंगापुर में ब्रिटिश को हरा देता है और सिंगापुर को ऑक्यूपाइड की साइड से लड़ रहे थे सिंगापुर में जापान के टेकओवर के बाद वो प्रिजनर्स ऑफ वॉर बन जाते हैं जापान के हाथों यहां नेताजी को एक और अपॉर्चुनिटी दिखती है क्यों ना इन लोगों को भी अपनी आर्मी में शामिल किया जाए इस सबके बीच अगस्त 1942 में महात्मा गांधी जी क्विट इंडिया मूवमेंट का ऐलान करते हैं इंडिया में भी लाखों की भीड़ खड़ी हो जाती है रेवोल्यूशन के लिए तैयार ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ यह खबर जब नेताजी तक पहुंचती है तो वह इसे सुनकर बड़ा खुश होते हैं आजाद हिंद रेडियो के जरिए वह अपना संदेश देते हैं सभी इंडियंस गांधी जी को सपोर्ट करें यह मूवमेंट इंडिया का नॉन वायलेंट गोरिला वरफेन है इवन दो कुछ साल पहले गांधी जी और नेताजी की विचारधारा में कुछ मतभेद रहे थे दोनों की राय इतनी मिलती नहीं थी एक दूसरे से लेकिन इस पॉइंट ऑफ टाइम पर दोनों एक दूसरे के सपोर्ट में खड़े थे 31 अगस्त 1942 जब नेताजी को पता चलता है कि सावरकर और जिन्ना जैसे लोग क्विट इंडिया मूवमेंट के खिलाफ है तो वो कुछ ऐसा कहते हैं आजाद हिंद रेडियो पर आई वुड रिक्वेस्ट मिस्टर जिन्ना मिस्टर सावरकर एंड ऑल दोज लीडर्स हु स्टिल थिंक ऑफ अ कंप्रोमाइज विद द ब्रिटिशर्स टूरिलाइज फॉर वंस ऑफ ऑल दैट इन द वर्ल्ड ऑफ टुमारो देर वुड बी नो ब्रिटिश एंपायर मैं जिन्ना और सावरकर जैसे लीडर से कहना चाहूंगा याद रख लो आने वाले समय में कोई ब्रिटिश हुकूमत नहीं रहने वाली है साल 1940 में गांधी जी और नेताजी की आखिरी फेस टू फेस मीटिंग हुई थी और इस मीटिंग में गांधी जी ने नेताजी को कहा था अगर आपके तरीके इंडिया को आजादी दिलाने में सक्सेसफुल रहते हैं तो सबसे पहला कांग्रेचुलेशन का टेलीग्राम मेरी तरफ से आएगा इस इंसिडेंट को खुद नेताजी ने अपनी किताब द इंडियन स्ट्रगल में लिखा था तो इनके विचार और तौर तरीके जरूर एक दूसरे से अलग थे लेकिन एक दूसरे को यह बहुत एडमायरीन संघर्ष कर रहे थे और नेताजी इंडिया के बाहर से संघर्ष कर रहे थे 8 फरवरी 1943 नेताजी अपने दोस्त एसीएन नं बियार को इंचार्ज बना देते हैं इंडियन लीजन और आजाद हिंद सेंटर का और वह जर्मनी छोड़कर निकल पड़ते हैं जापान की ओर इस बार इनका रास्ता जमीन के ऊपर से नहीं होता बल्कि ये डुबकी लगाते हैं पानी के अंदर एक जर्मन सबमरीन में बैठकर य 1880 जर्मन सबमरीन एक बार फिर से यह अपना रूप बदलते हैं और बन जाते हैं मिस्टर मत्सूरा इसी किस्से की बात मैंने वीडियो के शुरू में करी थी वैसे ये अकेले इंडियन नहीं थे सबमरीन में बैठने वाले इनके साथ इंडियन लीजन के एक और लीडर थे अबीद हसन सफरा ढाई महीने बाद मेडागास्कर की कोस्ट पर दोनों ही सबमरीन बदलते हैं और एक जैपनीज सबमरीन में इनका स्वागत किया जाता है 8 मई 1943 यह सबमरीन सांग पहुंचती है जो कि आज के दिन के इंडोनेशिया का हिस्सा है वहां से ये फ्लाइट पकड़ते हैं टोक्यो की ओर और 16th मई को जापान पहुंच जाते हैं जापान के प्रधानमंत्री टोज से दो बार मुलाकात होती है नेताजी की पहली 10 जून को और दूसरी 14 जून को अपनी दूसरी मुलाकात में नेताजी ओपनली उनसे पूछते हैं क्या जापान अपनी अनकंडीशनल मदद दे सकता है इंडियन इंडिपेंडेंस मूवमेंट को मैं यह कंफर्म करना चाहता हूं कि अगर जापान हमारी मदद करे तो वह नो स्ट्रिंग्स अटैच वाली मदद जर्मनी में महीनों की कोशिश के बाद भी हिटलर नहीं माना था लेकिन जापान में यह एक ही सवाल काफी था तोजो इमीडिएट मान जाते हैं कि वो नेताजी की मदद करेंगे और जापान का ये सपोर्ट पब्लिकली दुनिया के सामने दिखाया जाता है दो दिन बाद 16 जून को बोस जैपनीज डाइट के 82 एक्स्ट्राऑर्डिनरी सेशन को अटेंड करने जाते हैं और वहां पर प्राइम मिनिस्टर टोज एक ऐतिहासिक एड्रेस देते हैं इंडिया सदियों से इंग्लैंड के रूल के अंदर बना रहा है हम यहां कंप्लीट इंडिपेंडेंस की एस्पिरेशन दिखाते हैं और कहते हैं कि जापान हर वह चीज करेगा जो करनी पड़े इंडिया को इंडिपेंडेंस दिलाने के लिए मुझे यकीन है कि इंडिया की आजादी और प्रोस्पेरिटी ज्यादा दूर नहीं है इसके बाद सुभाष चंद्र बोस की तरफ से एक स्टेटमेंट दी जाती है जिसे वीडियो पर रिकॉर्ड किया जाता है बहुत कम असली वीडियो फुटेजेस रिकॉर्ड पर है हमारे पास नेताजी की यह उनमें से एक है देखिए जरा इंडिया एंड जापान हैव इन द पास्ट बीइंग बाउंड बाय डी कल्चरल टाइज व् आर अबाउट 20 सेंचुरिज ओल्ड इन रिसेंट टाइम्स कल्चरल रिलेशंस हैव बीन इंटरप्टेड बिकॉज ऑफ द ब्रिटिश डोमिनेशन ऑफ इंडिया इट इज हावर सर्टन ट न इंडिया इज फ्री स रिलेशन विल बी रिवाइव एंड विल बीस्ट इन दिस कनेक्शन आई शुड ड ट द स्टेटमेंट मेड बाय प्रीमियर जनरल टोज ऑन इंडिया सिंस मार्च 1942 एंड रिपीटेड बाय हिम बिफोर द इंपीरियल डायट ऑन द 16 जून 1943 हैव मेड ए प्रोफाउंड इंप्रेशन ऑन इंडिया एंड हैव ग्रेटली हेल्प द इंडियन इंडिपेंडेंस मूवमेंट जापान में सुभाष चंद्र बोस को इनवाइट करने वाले एक और फ्रीडम फाइटर थे रश बिहारी बोस नाम से यहां एक इंटरेस्टिंग फैक्ट बताना चाहूंगा आपको कि ये एक्चुअली में इंडियन नेशनल आर्मी के लीडर थे इस पॉइंट ऑफ टाइम पर आपको सुनकर लगेगा यह कैसे हो सकता है आईएएनए तो नेताजी ने बनाई थी लेकिन नहीं आईन एक्चुअली में नेताजी के जापान जाने से पहले से ही एजिस्ट करती थी पहली इंडियन नेशनल आर्मी को एक्चुअली में बनाया गया था जनरल मोहन सिंह के द्वारा फरवरी 1942 में जब सिंगापुर जापान के हाथों गिरा यह वाली आईने दिसंबर 1942 तक ऑपरेट करी जिसके बाद मोहन सिंह ने इस आर्मी को डिसबैंड कर दिया क्योंकि जैपनीज के साथ इनकी मतभेद हो रही थी इसके पीछे कारण यह था कि जैपनीज चाहते थे कि इंडियन नेशनल आर्मी उनके बिहाव पर उनकी लड़ाई फाइट करे साउथ ईस्ट एशिया में वही काम जो ब्रिटिश कर रहे थे कई इंडियंस ने यह करने से मना कर दिया तो इसलिए इन यूनिट्स को बंद कर दिया गया और मोहन सिंह को कस्टडी में ले लिया गया जपनीज के द्वारा द्वारा यहां पर एंट्री होती है रश बिहारी बोस की वो एक लीडर का काम करते हैं और आईएएनए को पूरी तरीके से खत्म होने से रोकते हैं सुभाष चंद्र बोस रश बिहारी बोस के साथ सेकंड जुलाई को सिंगापुर पहुंचते हैं और मालाओं से उनका स्वागत किया जाता है राम सिंह ठाकुरी के द्वारा एक बेहतरीन गाना जो उस वक्त बजाया गया जब वो प्लेन से नीचे उतरे तो एक और ओरिजिनल शान हिंद आ गए सुभाष जान हिंद है सुभाष शान हिंद है सुभाष जी सुभाष जी जान और यहां पर बची हुई आईन ही कमांड सौंपी जाती है नेताजी को ये एक बड़ा ऐतिहासिक पल था क्योंकि बहुत से इंडियंस इकट्ठे हुए थे सिंगापुर के पादा में नेताजी को सुनने के लिए और उनके द्वारा यहां पर एक बहुत ही कमाल का भाषण दिया जाता है एक ऐसा भाषण जिसमें वो चलो दिल्ली का नारा लगाते हैं की जय सिंगापुर में मौजूद इस इंडियन नेशनल आर्मी में करीब 13000 जवान थे नेताजी का प्लान था कि सबसे पहले इसे एक्सपेंड किया जाए पहले 50000 जवान इकट्ठे किए जाएं और बाद में 3 मिलियन लोगों की एक स्ट्रांग आर्मी बनाई जाए जापानीज सरकार शौक हो जाती है इस प्लान को सुनकर वो कहते हैं हम इतने लोगों को हथियार नहीं दे सकते हम सिर्फ 3 हज के करीब लोगों को हथियार प्रोवाइड कर सकते हैं लेकिन नेताजी के लिए यह लड़ाई सिर्फ हथियार से लड़ने वाली नहीं थी वो चाहते थे कि इवेंचर जनता भी आकर इनकी आर्मी का हिस्सा बने और फिर साथ में मिलकर ब्रिटिश को धकेला जाए यहां भी वही चीज देखी गई जो जर्मनी की इंडियन लीजन में देखी गई थी आईएएनए के सभी सोल्जर्स अलग-अलग धर्मों से आते थे लेकिन रती भर भी डिस्क्रिमिनेशन नहीं देखा गया इन लोगों के बीच में इंडियन नेशनल आर्मी का मोटो तीन उर्दू शब्दों से बनाया गया इत्तेफाक इतमा द और कुर्बानी जिनका मतलब है यूनिटी फेथ और सैक्रिफाइस टोटल में पांच रेजीमेंट्स में डिवाइड किया गया था आईएएनए को और इन पांच रेजीमेंट्स के नाम पांच फ्रीडम फाइटर्स पर रखे गए थे गांधी नेहरू मौलाना आजाद सुभाष और रानी ऑफ झांसी इवन जो आईएएनए का कैंपेन पोस्टर बना था जिस पर चलो दिल्ली लिखा हुआ था उसमें फोटो लगी थी महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू की एक और पोस्टर पर कोट्स लिखे गए थे सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी दोनों के द्वारा लेकिन आज के दिन कुछ लोग हैं जो नेताजी बड़े क्लियर कहते हैं एक रेडियो एड्रेस में इवन दो गांधी नॉन वायलेंस को सपोर्ट करते हैं लेकिन इंडियन नेशनल आर्मी को व अपना पूरा सपोर्ट सोट देने को तैयार है और इससे भी बड़ी चीज यह कि गांधी जी के फॉलोअर्स भी हमें सपोर्ट देंगे अपना सेकंड अक्टूबर 1943 एक और प्यारा संदेश नेताजी गांधी जी के लिए देते हैं रेडियो के जरिए महात्मा गांधी ने जो इंडिया को अपनी सर्विसेस दी है वो इतनी अनोखी है इतनी अनपैरेलल्ड है कि उनका नाम सोने से लिखा जाना चाहिए हमारी नेशनल हिस्ट्री में हमेशा के लिए कोई भी सिंगल इंसान अपनी पूरी जिंदगी में इतना अचीव नहीं कर सकता था इन सरकमस्टेंसस में जितना उन्होंने अचीव किया गांधी जी नेताजी के इस प्यार को वापस जताते हैं उन्हें प्रिंस ऑफ द पेट्रियट का टाइटल देते हुए 21 अगस्त 1943 नेताजी प्रोविजन गवर्नमेंट ऑफ आजाद हिंद सेटअप करते हैं 
Netaji Subhas Chandra Bose From Hitler's Germany to Japan| Full Biography in Hindi

सिंगापुर में इस प्रोविंशियल सरकार के हेड बनते हैं यह कहते हैं कि यह सरकार कोई नॉर्मल सरकार नहीं है हमारा मिशन अनोखा है हम एक फाइटिंग ऑर्गेनाइजेशन है और हम जंग का ऐलान करेंगे ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ द स्काई रिबटेड टू द फुल थ्रोटेड शट्स ऑफ जय हिंद अभी तक नेताजी के पास कोई टेरिटरी नहीं थी लेकिन जितने भी इंडियन लोग साउथ ईस्ट एशिया में रहते थे वो ऑफिशियल इनकी जूरिस जिक्स के अंडर थे सिंगापुर में स्थापित की गई सरकार के पास अधिकार था टैक्सेस कलेक्ट करने का लॉज इफोर्स करने का और इवन सोल्जर्स रिक्रूट करने का आर्मी के लिए दो महीने बाद दिसंबर 1943 में जपनीज आर्मी अंदमान एंड निकोबार आइलैंड से ब्रिटिश को बाहर निकालने में सक्सेसफुल रहती और जैपनीज सरकार इस टेरिटरी का पूरा कंट्रोल सुभाष चंद्र बोस को हैंड ओवर कर देती है ये पहली इंडियन टेरिटरी बन जाती है ब्रिटिश एंपायर से आजाद होने वाली 30 दिसंबर 1943 पोर्ट ब्लेयर में तिरंगा भी लहराया जाता है सुभाष चंद्र बोस के द्वारा इनकी प्रोविजनल सरकार एक इंडो जपनीज लोन एग्रीमेंट भी बनाती है 1944 में जापान के साथ नेगोशिएशंस में ये इंसिस्ट करते हैं कि इंडिया कोई जापान का क्लाइंट नहीं है बल्कि टेंपरेरिली एक वीक को इक्वल गवर्नमेंट और आर्मी है इसके तहत जापान इंडिया को एक 100 मिलियन यन का लोन देता है लेकिन नेताजी सिर्फ 10 मिलियन यन ही उसमें से इस्तेमाल करते हैं 7 जनवरी 1944 नेताजी प्रोविंशियल सरकार के हेड क्वार्टर्स को सिंगापुर से बाहर निकाल के रंगून बर्मा में ले जाते हैं यह इंडिया के अब बहुत करीब थे अगला टारगेट था इंफाल और कोहिमा को कैप्चर करना मार्च 1944 मे यहां एक ऑफेंसिव शुरू होता है और जमीन पर वन ऑफ द टफेस्ट लैंड बैटल्स लड़ी जाती है वर्ल्ड वॉर ट की ये लड़ाई साढ़े महीने तक चलती है 3 मार्च 1944 से लेकर 18 जुलाई 1944 तक करीब 1 लाख आईएएनए और जैपनीज सोल्जर्स एक तरफ फाइट कर रहे थे और दूसरी तरफ फाइट करने वाले ब्रिटिश की तरफ से भी इंडियन लोग ही थे ब्रिटिश इंडियन आर्मी में भर्ती हुए शुरुआत में आईएएनए काफी सक्सेसफुल रहती है मणिपुर के मोइरांगखोम से बारिश और कीचड़ में लड़ना मुश्किल हो रहा था दूसरी तरफ पैसिफिक ओशन में जैपनीज आर्मी अमेरिका के हाथों लॉसेस सह रही थी तो आईनी की फोर्सेस के पास कोई ज्यादा एयर कवर मौजूद नहीं था ब्रिटिश के पास यहां एक बड़ा क्रुशल एडवांटेज था ब्रिटिश के जहाजों ने सप्लाई लाइंस पर हमला किया फूड रेशंस खत्म होने लगे आईएएनए के सोल्जर्स और जैपनीज सोल्जर्स जो यहां पर मौजूद थे उनके पास सिर्फ घास और जंगल फ्लावर्स बचे खाने के लिए जिंदा रहने के लिए 6 जुलाई 1944 गांधी जी को जेल से रिहा हुए करीब 2 साल हो चुके थे नेताजी रेडियो पर एक एड्रेस करते हैं फादर ऑफ आवर नेशन इंडिया के लिबरेशन की इस होली वॉर में हमें आपकी ब्लेसिंग्स की जरूरत है ये पहली बार था कि गांधी जी को फादर ऑफ द नेशन करके किसी ने पुकारा था यहीं से ही ये टाइटल आता है दोस्तों ये टाइटल और किसी ने नहीं बल्कि खुद सुभाष चंद्र बोस ने ही दिया था गांधी जी को 10 जुलाई 1944 जापानीज इफॉर्म करते हैं नेताजी को कि उनकी मिलिट्री पोजीशन को अब डिफेंड नहीं किया जा सकता रिट्रीट करने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं है इंफाल के अटैक के फेल होने के बाद आईएएनए के ट्रूप्स मार्च करके वापस वर्मा आ जाते हैं 21 अगस्त 1944 में नेताजी पब्लिकली एक्नॉलेज करते हैं इंफाल कैंपेन के फेलियर को यह कहते हैं कि बारिश के मौसम के जल्दी आने की वजह से और सप्लाई सिस्टम में डिफेक्ट्स की वजह से हमें यहां सेटबैक फेस करना पड़ा नेताजी इसके बाद वापस सिंगापुुर लौट जाते हैं और आईएएनए को दोबारा से बिल्ड करने की कोशिश करते हैं आगे क्या होता है इस मूवमेंट को आगे कैसे कंटिन्यू रखा जाता है नेताजी और क्या-क्या करते हैं और आई एनए के सोल्जर्स कैसे एक और इंपॉर्टेंट रोल निभाते हैं आगे चलकर इंडिया के इंडिपेंडेंस में इन सब चीजों की बात करते हैं इस वीडियो के अगले पार्ट में क्योंकि काफी लंबा हो गया यह वाला वीडियो अभी के लिए वीडियो पसंद आया तो अब जाकर आप क्विट इंडिया मूवमेंट वाला वीडियो देख सकते हो क्योंकि यह तो पूरी इंडिया के बाहर की कहानी थी 1942 से 1944 तक लेकर लेकिन इंडिया में इस समय में क्या चल रहा था बाकी और फ्रीडम फाइटर्स क्या कर रहे थे आगे के आर्टिकल्स में पढ़िए। 

Tags

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.